Bhagat Singh biography Hindi – भगत सिंह का जीवन परिचय – भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भगत सिंह को जाना जाता है. भगत सिंह भारत के महान विभूति है. मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे.
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने में कई सारे देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी दे डाली है. इन्हीं में से भगत सिंह भी एक थे जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की उम्र में देश को आजादी दिलाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी थी. भगत सिंह नौजवानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी है. भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत में हुआ था वह एक पंजाबी परिवार से तालुकात रखते हैं.
ब्रिटिश शासन के दौरान ही अंग्रेजों को भारतीयों पर अत्याचार करते हुए भगत सिंह ने देखा था. बहुत ही कम उम्र में जब देश के लिए कुछ कर गुजरने की बात उनके मन में बैठी, तब उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर दी थी. वह सोचते थे कि देश के नौजवान देश की काया पलट सकते हैं, इसीलिए उन्हें सभी नौजवानों को एक नई दिशा दिखाने की कोशिश की है. आज के हमारे इस लेख में हम Bhagat Singh biography Hindi – भगत सिंह का जीवन परिचय – के बारे में बात करने वाले हैं.
Bhagat Singh biography Hindi – भगत सिंह का जीवन परिचय
स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत के एक सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम किशन सिंह था. जब भगत सिंह का जन्म हुआ था उस दौरान उनके पिता किशन सिंह जेल में अंग्रेजो के खिलाफ विरोध करने पर चले गए थे. इनके चाचा अजीत सिंह भी एक बहुत बड़े स्वतंत्रता सेनानी थे.
यही वजह थी कि भगत सिंह ने बचपन से ही अपने घर वालों को देश के प्रति समर्पित और देश के लिए भक्ति देखी थी. भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को हुआ था. इनके चाचा अजीत सिंह एक महान क्रांतिकारी माने जाते थे. इनके ऊपर ब्रिटिश सरकार ने 22 केस दर्ज किए थे. ब्रिटिश सरकार से बचने के लिए इनके चाचा अजीत सिंह इरान चले गए थे. भगत सिंह के पिता ने इनका दाखिला प्रारंभिक शिक्षा के लिए दयानंद एंगलो वेदिक हाई स्कूल में कराया था.
वर्ष 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से भगतसिंह काफी दुखी हुए थे और महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन का भगत सिंह ने खुलकर के समर्थन भी किया था.
भगत सिंह ने देश प्रेम इतना कूट-कूट कर के भरा हुआ था की सरेआम वे अंग्रेजों को ललकारा करते थे, गांधीजी के कहे अनुसार ब्रिटिश किताबों को उन्होंने जला दिया था. चौरी चौरा में हुई हिंसात्मक कार्यवाही के चलते गांधी जी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया था जिसके बाद भगत सिंह उनके फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने गांधी जी की अहिंसा वादी बातों को छोड़ कर के एक दूसरी पार्टी ज्वाइन करने का निश्चय कर लिया था.
भगत सिंह जब लाहौर के नेशनल कॉलेज में अपनी B.a. की पढ़ाई कर रहे थे तब उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवतीचरण और भी कुछ लोगों से हुई. उस दौरान पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे. लोग अंग्रेजों का विरोध कर रहे थे. इन सभी चीजों से प्रभावित होकर के भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़ दी. आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.
इसी दौरान भगत सिंह के परिवार वाले चाहते थे कि भगत सिंह शादी कर ले. लेकिन भगत सिंह ने शादी से इंकार कर दिया और कहा ” अगर आजादी के पहले मैं शादी करूंगा, तो मेरी दुल्हन मौत होगी”. उतरन भगत सिंह अपने कॉलेज के दिनों में बहुत सारे नाटक मंडलियों में काम करते थे. इस चलते देखा जाए तो भगत सिंह को अभिनय का भी काफी शौक था. उनके लिखे नाटक और अभिनय में देशभक्ति की भावना अच्छी तरह से झलकती थी. अपने नाटक मंडली के द्वारा हुआ हमेशा अंग्रेजों को नीचा दिखाया करते थे. भगत सिंह यह भी कोशिश करते थे कि नौजवानों को नाटक के जरिए देश प्रेम के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहित किया जाए. भगत सिंह के मस्त मौलाना इंसान थे.
भगत सिंह और स्वतंत्रता की लड़ाई
भगत सिंह ने सबसे पहले नौजवान भारत सभा ज्वाइन की. उनके घर वालों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि वे अब उनकी शादी के बारे में कभी नहीं सोचेंगे. इसके बाद भगत सिंह अपने घर लौट आए.
इसके बाद भगत सिंह ने किसान पार्टी मैं अध्यक्षता ले ली और लोगों के बीच में मेलजोल बढ़ाने लगे. उनकी मैगजीन के लिए भी उन्होंने कार्य किया. इस मैगजीन के द्वारा भगतसिंह नौजवानों को संदेश पहुंचाया करते थे. भगत सिंह एक अच्छे लेखक भी थे जो पंजाबी उर्दू दोनों ही भाषा में काफी निपुण लेखक थे.
वर्ष 1926 में नौजवान भारत सभा में भगत सिंह को सेक्रेटरी बना दिया गया. इसके बाद वर्ष 1928 में उन्होंने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में अध्यक्षता ले ली. जो कि उस दौरान एक मौलिक पार्टी थी जिसे चंद्रशेखर आजाद ने बनाया था. पूरी पार्टी ने मिल कर के 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन का विरोध किया था. इस विरोध में उनके साथ में लाला लाजपत राय भी थे. ” साइमन कमीशन वापस जाओ” का नारा लगाते हुए वे लाहौर रेलवे स्टेशन में ही खड़े रहे. जहां पर अंग्रेजी सरकार द्वारा उन पर लाठीचार्ज कर दी गई. जिसमें लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आई थी. जिसके चलते उनका देहांत हो गया था.
लाला लाजपत राय की मृत्यु से भगत सिंह को काफी दुख पहुंचा था. इस वजह से लाला लाजपत राय की पार्टी और भगत सिंह ने या ठान लिया कि अंग्रेजों से उनके मौत का बदला लेना है. लाला लाजपत राय की मौत के लिए जिम्मेदार ऑफिसर स्काउट को मारने का योजना बनाया गया. इस योजना में गलती से असिस्टेंट पुलिस सांडर्स को मार डाला गया. अपने आप को बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर भाग गए थे. ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ढूंढने के लिए चारों तरफ जाल बिछा दिया और भगत सिंह ने अपने आप को बचाने के लिए बाल और दाढ़ी कटवा ली थी. जो कि उनकी समाज के सामाजिक धार्मिकता के खिलाफ है. लेकिन उस समय भगत सिंह को देश के आगे कुछ भी नहीं दिखाई दिया था.
दूसरे अन्य स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजदेव व सुखदेव यह सब अब एक साथ मिल चुके थे. सभी स्वतंत्रता सेनानी ने मिलकर के यह योजना बनाई की कुछ बड़ा धमाका किया जाए. भगत सिंह हमेशा कहते थे कि अंग्रेजों बहरे हो गए हैं, उन्हें ऊंचा सुनाई देता है जिसके लिए बड़ा धमाका जरूरी है.
इस योजना में उन्होंने यह फैसला लिया कि वे कमजोर ओं की तरह इस बार भागेंगे नहीं. बल्कि पुलिस के हवाले हो जाएंगे. जिस देशवासियों को एक सही संदेश पहुंचेगा. वह दिन आ गया वर्ष 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बूट के स्वर दत्त के साथ मिलकर के ब्रिटिश असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया. यह बम केवल आवाज करने वाला बम था. इस बम को उन्होंने खाली जगह का था. इस बम से किसी की भी जान नहीं गई थी. इसके बाद ही उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए और पर्चे बांटे और इसके बाद दोनों ने अपने आप को गिरफ्तार करवा लिया था.
भगत सिंह को फांसी
भगत सिंह अपने आप को शहीद कहा करते थे. यही वजह है कि उनके नाम के साथ शहीद भगत सिंह जोड़ा जाता है. ब्रिटिश असेंबली पर बम गिराने की वजह से उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया. इस मुकदमे में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा चलाकर के फांसी की सजा सुना दी गई थी.
तीनों स्वतंत्रता सेनानी ने कोर्ट में इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. ब्रिटिश सरकार द्वारा भगतसिंह को कारावास में भी काफी यातनाएं दी गई थी. उस दौरान भारतीय कैदियों के साथ में अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था. कारावास में ना ही उन्हें अच्छा भोजन मिलता था. ना ही अच्छे कपड़े कैदियों को दिए जाते थे. भगत सिंह यहां भी नहीं रुके उन्होंने कारावास के अंदर में ही क्रांतिकारी आंदोलन शुरू कर दी थी. कैदियों की स्थिति सुधारने के लिए यह क्रांतिकारी आंदोलन चलाई गई थी.
उन्होंने अपनी मांग पूरी करने के लिए कई दिनों तक अनासन किया था. इस दौरान ना ही उन्होंने पानी पिया और ना ही अन्न का एक दाना खाया. अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर काफी जुल्म ढाहे थे. काफी यातनाएं दी गई थी ताकि भगत सिंह कमजोर हो जाए और ब्रिटिश सरकार के सामने गिड़गिड़ा ने लगे लेकिन अंत तक भगत सिंह ने हार नहीं मानी. वर्ष 1930 में भगत सिंह ने Why I am Atheist नाम से एक किताब भी लिखी थी.
वर्ष 1931, 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव को फांसी की सजा दे दी गई. कहते हैं कि फांसी की तारीख 24 मार्च तय की गई थी. लेकिन उस समय पूरे देश में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन किए जा रहे थे. जिस वजह से ब्रिटिश सरकार को डर था कि कहीं फैसला बदल ना जाए. इसी वजह से उन्हें 23 मार्च को 24 मार्च की वजह फांसी की सजा मध्य रात्रि को कर दी थी. और इसी दिन रातों-रात उनकी अंतिम संस्कार भी कर दिया गया था.
भगत सिंह से जुड़े कविताएं
“अंग्रेजों को याद किसी ने जब औकात दिलाई थी, इंकलाब की हवा चली थी, आजादी शरमाई थी, दुश्मन से टक्कर को खेतों में बंदूकें बोता था, नहीं कहानी यह सच में एक सिंह ‘ भगत सिंह’ होता था।।”
” छोड़ दिया घर बार, वतन को ही माना उसने अपना, झूला फांसी के फंदे पर पूरा करने को सपना, निर्भयता के धागे में साहस के पुष्प भी रोता था, नहीं कहानी यह सच में एक सिंह ‘ भगत सिंह’ होता था।।”
” राजगुरु -सुखदेव -चंद्रशेखर- बिस्मिल्लाह आजाद हुए, मिलकर खेली खून की होली मुल्क की खातिर खाक हुए, पराधीन भारत स्वतंत्र हो काम यही बस होता था, नहीं कहानी यह सच में एक सिंह ” भगत सिंह” होता था।।”