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Brahmani And Sesame Seeds – ब्राह्मण और तिल के बीज पंचतंत्र कहानियां
बिना कारण कार्य नहीं
एक बार की बात है एक निर्धन ब्राह्मण परिवार रहता था. एक समय उनके यहां कुछ अतिथि आए थे. उनके घर पर खाने पीने का सारा सामान खत्म हो चुका था, इसी बात को लेकर ब्राह्मण और ब्राह्मण की पत्नी आपस में बातचीत हो रही थी:-
ब्राह्मण – ” कल सुबह कर्क सक्रांति है, भिक्षा के लिए मैं दूसरे गांव जाऊंगा. वहां एक ब्राह्मण सूर्य देव की तृप्ति के लिए कुछ दान करना चाहता है.”
ब्राह्मण की पत्नी ने कहा – ” तुझे तो भोजन योग्य अन्न कमाना भी नहीं आता. तेरी पत्नी होकर मैंने कभी सुख नहीं भोगा, मिठाइयां नहीं खाए, वस्त्र और आभूषण को तो बात ही क्या कहनी?”
ब्राह्मण – ” देवी! तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए. अपनी इच्छा के अनुरूप धन किसी को नहीं मिलता है. पेट भरने योग्य अन्न तो मैं भी ले आ ही आता हूं. इससे अधिक की तृष्णा का त्याग कर दो. अति तृष्णा के चक्कर में मनुष्य के माथे पर शिखा हो जाती है.”
ब्राह्मण की पत्नी ने पूछा – ” यह क्या से?”
तब ब्राह्मण ने सूअर — शिकारी और गीदड़ की एक कथा सुनाएं
एक दिन की बात है एक शिकारी शिकार की खोज में जंगल की ओर गया. जाते-जाते उसे जंगल में काले अंजन के पहाड़ जैसा काला बड़ा सूअर दिखाई दिया. उसे देखकर उसने अपने धनुष की प्रत्यांचा को कानों तक खींच कर निशाना मारा. Brahmani And Sesame Seeds
निशाना ठीक स्थान पर लगा. सूअर घायल होकर शिकारी की ओर दौड़ा. शिकारी भी तीखे दांत वाले सुअर के हमले से गिरकर घायल हो गया. उसका पेट फट गया. शिकारी और शिकार दोनों का अंत हो गया.
इसी बीच एक भटकता और भूख से तड़पता गीदड़ वहां आ निकला. वहां सूअर और शिकारी, दोनों को मरा देखकर वह सोचने लगा, ” आज देवास बड़ा अच्छा भोजन मिला है. कई बार बिना विशेष उदम के ही अच्छा भोजन मिल जाता है. इससे पूर्व जन्मों का फल ही कहना चाहिए.”
यह सोचकर वहा मृत लाशों के पास जाकर पहले छोटी चीजें खाने लगता है. उसे याद आ गया कि अपने धन का उपयोग मनुष्य को धीरे-धीरे ही करना चाहिए; इसका प्रयोग रसायन के प्रयोग की तरह करना उचित है. इस तरह अल्प से अल्प धन भी बहुत काल तक काम देता है. अतः इनका भोग में इस रीति से करूंगा कि बहुत दिनों तक इनका उपभोग से ही मेरी प्राण यात्रा चलती रहे. Brahmani And Sesame Seeds
यह सोचकर उसने निश्चय किया कि वह पहले धनुष की डोरी को खाएगा. उस समय धनुष की प्रत्याशा चढ़ी हुई थी. उसकी डोरी कमान के दोनों सिरों पर कसकर बांधी हुई थी. गीदड़ ने डोरी को मुख में लेकर चबाय . चबाते वह डोरी बहुत वेग से टूट गई; और धनुष के कोने का एक शेर उसके माथे को भेजकर ऊपर निकल आया, मानव माथे पर शिखा निकल आई हो. इस प्रकार घायल होकर वह गीदड़ भी वही मर गया.
ब्राह्मण ने कहा – ” इसलिए मैं कहता हूं कि अतिशय लोग से माथे पर सीखा हो जाती है.”
ब्राह्मण की पत्नी ने ब्राह्मण की या कहानी सुनने के बाद कहा – ” यदि यही बात है तो मेरे घर में थोड़े से तिल पडें है. उनका शोधन करके कूट छांट कर अतिथि को खिला देती हूं.”
ब्राह्मण उसकी बात से संतुष्ट होकर भिक्षा के लिए दूसरे गांव की ओर चल पड़ा. ब्राह्मण की पत्नी ने भी अपने वचन अनुसार घर में पड़े तीलों को छांटना शुरू कर दिया.
छांट – पछोड कर जब उसने तिलों को सुखाने के लिए धूप में फैलाया तो एक कुत्ते ने उन तिलों को मूत्र विस्ठा से खराब कर दिया. ब्राह्मणी बड़ी चिंता में पड़ गई. यही तिल थे, जिन्हें पका कर उसने अतिथि को भोजन देना था.
बहुत विचार के बाद उसने सोचा कि अगर वह इन शोधित तिलों के बदले अशोधित तिल मांगेंगे तो कोई भी दे देगा. इनके खराब होने का किसी को पता भी नहीं लगेगा. यह सोचकर वह उन दिनों को छाज में रखकर घर-घर घूमने लगी और कहने लगी – ” कोई इन छँटे हुए तिलों के स्थान पर बिना छँटे तिल दे दे.”
अचानक यह हुआ कि ब्राह्मणी तिलों को बेचने एक घर में जा पहुंच गई, और कहने लगी कि – “बिना छँटे हुए तिलों क्या स्थान पर छठे हुए तिलों को ले लो.” . उस घर की ग्रह पत्नी जब यह सौदा करने जा रही थी तब उसके लड़के ने, जो अर्थशास्त्र पढा हुआ था, ने कहा –
” माता! इन तिलों को मत लो. कौन पागल होगा जो बिना छँटे दिलों को लेकर छँटे हुए दिल देगा. यह बात निस कारण नहीं हो सकती. जरूर ही इन छँटे हुए तिलों में कोई दोष होगा.”
पुत्र के कहने से माता ने यह सौदा नहीं किया.