Jadav Payeng Inspirational Story – जादव पायेंग का जीवन परिचय – एक ऐसे व्यक्ति हैं जो अपनी इच्छाशक्ति के दम पर इन्होंने पूरा का पूरा जंगल ही लगा डाला. इन्होंने 1360 एकड़ भूमि में अकेले अपने दम पर पेड़ लगाए हैं. इस वजह से यह दुनिया भर में काफी प्रसिद्धि हुए. इनके इस प्रयास के चलते इन्हें वर्ष 2015 में देश का चौथा सर्वोच्च सम्मान पदम श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है.
जादव पायेंग ऐसे शख्स हैं जिन्होंने अपनी क्षमता से यह कर दिखाया है कि अगर किसी चीज को करने के लिए इंसान ठान ले तो इंसान उसे किसी भी सूरत में कर ही दिखाता है. इन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए अपने कत्थक प्रयासों के बलबूते पर पूरा का पूरा 550 हेक्टेयर पर जंगल बना दिया. इस चलते इन्हें पदम श्री से सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा इन्हें भारत का फॉरेस्ट मैन भी कहा जाता है. इनका जीवन भी कई सारे लोगों को एक प्रेरणा देती है. किस तरह एक इंसान ने 30 वर्षों में 1350 एकड़ भूमि पर जंगल लगाया है. तो, आज के हमारे इस लेख में हम जानेंगे Jadav Payeng Inspirational Story – जादव पायेंग का जीवन परिचय
Jadav Payeng Inspirational Story – जादव पायेंग का जीवन परिचय
जादव पायेंग का संक्षिप्त जीवन परिचय |
---|
नाम - जादव पायेंग |
जन्म - वर्ष 1963 में |
जन्म स्थान - असम भारत |
पैशा - वनपाल |
पत्नी का नाम - विनीता पायेंग |
बच्चे - तीन बच्चे हैं, मुमुनी, संजय और संजीव |
पुरस्कार से सम्मानित - वर्ष 2015 में पदम श्री पुरस्कार |
जादव पायेंग का जीवंन सारे लोगों को प्रेरणा देती है. यह भारत के एक छोटे से शहर से तालुकात रखते हैं. माना जाता है कि जोरहाट के ब्रह्मपुत्र नदी के क्षेत्र पर इन्होंने अकेले दम पर 1350 एकड़ भूमि में पूरा एक जंगल लगाया है.
इसके पीछे की कहानी भी काफी दिलचस्प है. जब जादव पायेंग मात्र 13 वर्ष के थे. उस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी क्षेत्र पर हर वर्ष बाढ़ आया करता था. यह बात है माजुली द्वीप की. जो एक समय बंजर और बेजर भूमि हुआ करती थी. 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने देखा कि बाढ़ के आने के कारण उस क्षेत्र में कई सारे जीव की मृत्यु हो जाती थी.
इस दुखद घटना के चलते उनके जीवन में काफी प्रभाव पड़ा. जादव पायेंग एक जनजातीय समुदाय के व्यक्ति होने के चलते. 13 वर्ष की आयु में उन्होंने ठाना की इस क्षेत्र में वनों की काफी कमी है. तो पेड़ लगाए जाए. उन्होंने सबसे पहले बांस के पौधे पेड़ वहां पर लगाना शुरू किया. हर दिन वह उस क्षेत्र पर जा करके पेड़ लगाया करते थे. जीवन यापन के लिए उनके गाय भैंस से दूध और थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी कर लिया करते थे. लेकिन, उनका ज्यादातर समय माजुली द्वीप पर पेड़ लगाने में ही बीता था. 30 वर्षों तक यह सिलसिला जारी रहा. और उन्होंने 1350 एकड़ भूमि ( 550 हेक्टर) पर पूरा का पूरा एक जंगल ही बसा डाला है.
इस जंगल में अब कई तरह के जानवर, जीव जंतु इत्यादि भी रहते हैं. बाढ़ आने पर यह जीव जंतु अत्यधिक जंगल और पेड़ पौधे होने के चलते बाढ़ का क्षेत्र ज्यादा प्रभाव भी नहीं दिखता है.
जादव पायेंग का आरंभिक जीवन
वर्ष 1779 की बात है जब असम में भयंकर बाढ़ आई थी. इस बाढ़ ने असम के कई इलाकों को भयंकर रूप से प्रभावित किया था. इस बाढ़ के चलते जमीन पर सिर्फ मिट्टी और कीचड़ के टीले ही नजर आते थे.
जादव पायेंग उस समय मात्र 16 वर्ष के थे. जब उन्होंने देखा कि ब्रह्मपुत्र नदी स्थित द्वीप अरुण आशापुरी के पास कई सारे जंगली जानवर मरे पड़े थे. जादव पायेंग उस समय जगन्नाथ भरवा आर्य विद्यालय में कक्षा 10 की परीक्षा दे रहे थे.
रेतीले और सुनसान जमीन में सैकड़ों सांप को बेजान मरता देख भाई चौक गए. इस घटना के बाद उनका मन काफी दुखी हो गया था. उन्होंने यही बात जब अपने बड़े बुजुर्गों से पूछी की अगर इन्हीं सांपों की तरह एक दिन हम सब भी मर गए तो वह क्या करेंगे? उनकी इस बात पर सभी बड़े बुजुर्ग लोग हंसने लगे और उनका काफी मजाक भी उड़ाया गया.
लेकिन, जादव पायेंग ने मन ही मन यह ठान लिया था कि इस क्षेत्र को हरा भरा बनाना है. अप्रैल 1779 में देखा कि पूरा क्षेत्र मिट्टी और कीचड़ से भरा हुआ था. वहां पर उन्होंने पेड़ लगाने के बारे में सोचा. इस बारे में उन्होंने गांव वालों से बात भी की. गांव वालों ने उन्हें पेड़ लगाने की सलाह दी और 50 बीज और 25 बांस के पौधे उन्हें दिए गए.
जादव पायेंग, ने उन पेड़ पौधों को लगाया और उनकी देखरेख की, यह काम वह लगातार करते रहे और आज 30 वर्षों बाद उन्होंने अपने दम पर एक जंगल खड़ा कर दिया है. जोरहाट में कोकिलामुख के पास स्थित जंगल का नाम मोलाई फॉरेस्ट उन्हीं के नाम पर रखा गया है. क्रिस्टियानो रोनाल्डो की प्रेरणादायक जीवन पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें.
जादव पायेंग का सफर इस जंगल को बनाने में आसान नहीं था. वे 1360 एकड़ जमीन में जंगल बसाना किसी संघर्ष से कम नहीं है. उन्होंने पेड़ पौधों को दिन-रात पानी दिया है. यहां तक कि उन्होंने गांव से लाल चीटियां इकट्ठे कर उन्हें सेंड बार कीचड़ में छोड़ा. कई छोटे-मोटे जीव जंतु को भी इस जंगल ने आश्रय देना शुरू किया. अंत में उनकी सफलता रंग लाई. आज इस जंगल में कई तरह की वनस्पतियां और जीव-जंतुओं की श्रेणी पाई जाति ने लगी है. आज इस जंगल में डूब के कगार पर पहुंचे एक सींग वाले गैंडे और रॉयल बंगाल टाइगर भी देखने को मिलते हैं.
जादव पायेंग को मिले पुरस्कार एवं सम्मान |
---|
जादव पायेंग को मिले पुरस्कार एवं सम्मान इन्हें अपनी इस योगदान के लिए वर्ष 2012 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय द्वारा स्कूल ऑफ़ एनवायरमेंटल साइंस द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक समारोह में इन्होंने इंटरएक्टिव सत्र के दौरान जंगल बनाने के अपने अनुभव को साझा किया था. यहां पर इन्हें "फॉरेस्ट मैन ऑफ इंडिया" के खिताब से भी सम्मानित किया गया था. |
इसके अलावा भारतीय वन प्रबंधन संस्थान द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया जा चुका है. |
वर्ष 2015 में इन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदम श्री से भी सम्मानित किया गया था. इसके अलावा असम कृषि विश्वविद्यालय और काजीरंगा विश्वविद्यालय से इन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है. |