Mangal Pandey Inspirational Story – क्रांतिकारी मंगल पांडे की जीवनी. मनुष्य चाहे कोई भी हो, महान कार्य करने पर अमर हो जाता है. मंगल पांडे भी महान कार्य करके अमर हो गए.
भारत मां की संतानों में वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों पर पहली गोली चलाई थी. वे जानते थे कि गोली चलाने का क्या परिणाम होगा? किंतु उनके मन को दासता की पीड़ा ने अत्यधिक व्याकुल कर दिया था. मृत्यु और फांसी कब है उनके मन से निकल चुका था. उन्होंने मुक्त मन से अंग्रेज अवसर पर गोली चला कर अपने कर्तव्य का पालन किया. उनका साहब वंदनीय था. भारत की स्वतंत्रता का इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है.
आज की हमारी इस लेख में हम मंगल पांडे के जीवन के बारे में जानेंगे. Mangal Pandey Inspirational Story – क्रांतिकारी मंगल पांडे की जीवनी
Mangal Pandey Inspirational Story – क्रांतिकारी मंगल पांडे की जीवनी
मंगल पांडे ना तो महान नेता थे, और ना ही महान योद्धा थे. विदेश सेना के एक साधारण सिपाही – एसएससी भाई जिनकी रगों में देश प्रेम का सागर बह रहा था. जो अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान होने की कामना मन में रखता था.
मंगल पांडे (Mangal Pandey) उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के एक ग्राम के निवासी थे. साधारण ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हुए थे. अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे. साधारण हिंदी भाषा जानते थे. फिर भी अंग्रेजी सेना में भर्ती हो गए थे.
वर्ष 1857 ईसवी में मंगल पांडे कोलकाता के पास बैरकपुर में निवास कर रहे थे. बड़े साहसी थे और उनका स्वभाव हसमुख था. इसके साथ ही उसके अंदर देश प्रेम भी कूट-कूट के भरा था. उनके अनेक साथी थे अनेक मित्र थे. उन्होंने अपने प्रेम और अपने अच्छे व्यवहार से अपने साथियों का मन जीत लिया था. जिस प्रकार हवा के झोंके से फिरहारी नाचती है उसी प्रकार मंगल पांडे के संकेतों पर उनके साथियों के मन नाचते थे.
वर्ष 1857, के दिन थे. नाना साहब के परिजनों से भारत के समस्त फौजियों के मन में विद्रोह की आग जाग उठी थी. अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया गया था. उस कार्यक्रम के अनुसार सारे भारत में 31 मई को महा क्रांति का यज्ञ होने वाला था. लेकिन मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली चला कर के महाक्रांति का शुभारंभ कर दिया.
कुछ लोग इसके लिए मंगल पांडे को दोषी ठहराते थे. वे कहते थे कि मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली चला कर के भूल कर दी थी. यदि वह गोली नहीं चलाते तो महाक्रांति असफल नहीं होती. लेकिन इसके बावजूद मंगल पांडे को दोषी ठहराना उचित नहीं है. जो स्थिति सामने थी उन्हें देखते हुए कोई भी देश भक्त अपने वश में नहीं रह पाता. मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली क्यों चलाई? , इस बात को समझने के लिए हमें दो बातों पर ध्यान देना चाहिए.
जिस दिन 21 मार्च को होने वाले महाक्रांति यज्ञ की चर्चा जोरों से चल रही थी. उसी दिन तक आता के सैनिकों ने यह अफवाह दिल्ली की अंग्रेजी सरकार को कारतूस सैनिकों को देती है और जिन्हें वे अपने दांतो से काटकर खोलते हैं. उनमें सूअर और गाय की चर्बी लगी रहती है.
इस अफवाह ने हिंदू और मुसलमानों दोनों धर्म के सैनिकों में व्याकुलता पैदा कर दी. दोनों धर्म के सैनिक अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार हो गए. दूसरे सैनिक तो मौन ही रहे पर मंगल पांडे से अपने देश और धर्म का अपमान सहन नहीं हुआ. उन्हें एक क्षण युग के समान लंबा लगने लगा. वे शीघ्र अंग्रेजी सरकार की छाती गोलियों से छलनी कर मृत्यु की गोद में सोने के लिए उतावले हो उठे.
एक और बात थी जिसके कारण मंगल पांडे को 29 मार्च को ही गोली चलानी पड़ी थी. लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को लखनऊ निर्वासित कर दिया गया था. उन दिनों वाजिद अली शाह अपने वजीर अलीनक़ी खा के साथ बारकपुर के पास निवास करते थे. वाजिद अली खान और अलीनक़ी खा दोनों के ह्रदय में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध घृणा और शत्रुता की आग जल रही थी. दोनों ही बड़े कौशल के साथ सैनिकों से मिलते थे, उन्हें क्रांति के लिए उकसाया करते थे. कहा जाता है कि अलीनक़ी खा के द्वारा उत्तेजित किए जाने के कारण ही मंगल पांडे ने 29 मार्च को ही गोली चला दी थी. जो भी हो, मंगल पांडे ने निश्चित समय से पहले ही गोली चला कर के 1857 की महाक्रांति का शुभारंभ कर दिया था.
सैनिकों में जब यह अफवाह फैली तो उन्होंने विद्रोह करने का निश्चय किया. अंग्रेजों को जब इसका पता चला तो उन्होंने भी विद्रोह को दबाने का निश्चय किया. उन्होंने दो काम किए. एक तो यह कि बर्मा से गोरी पलटन मंगवाई और दूसरी 19 नंबर को पलटन को भंग करने का विचार किया और सैनिकों के वस्त्र और उनके हत्यारों को छीनने का निश्चय किया. Mangal Pandey Inspirational Story
19 नंबर पलटन सैनिकों को जब इन बातों का पता चला तो उनके भीतर ही विद्रोह अग्नि और अधिक तीव्र गति से जलने लगी. उन्होंने निश्चय किया कि प्राण दे, परदेस और धर्म का अपमान सहन नहीं करेंगे.
मंगल पांडे ने 19 नंबर पलटन के सैनिक थे. उन्हें जब अंग्रेजों के द्वारा किए जाने वाले दमन की तैयारी के बारे में पता चला तो उनके हृदय में भी क्रोध की अग्नि का सागर उमड़ पड़ा. उन्होंने अपने साथियों और मित्रों से कहा – ” 31 मई तक रुकना उचित नहीं है, हमें शीघ्र विद्रोह की आग जला देनी चाहिए. देर करने से हो सकता है कि अंग्रेज अपने को शक्तिशाली बना ले.” लेकिन मंगल पांडे की यह बात नहीं मानी गई. जो लोग महाक्रांति तैयारियों में लगे थे उन्होंने मंगल पांडे की बात का विरोध किया. किंतु मंगल पांडे को विद्रोह के लिए 31 मई तक रुकना सहन नहीं था.
मंगल पांडे अपने साथियों और मित्रों को अपने विचार के सांचे में ढालने का बहुत कोशिश किया, किंतु इस संबंध में कोई भी उनके बात मानने के लिए तैयार नहीं था. उन्होंने जब यह देखा कि उनका कोई भी साथ देने के लिए तैयार नहीं हो रहा है, तो उन्होंने अकेले ही विद्रोह की आग को जलाने का निश्चय किया.
29 मार्च का दिन था. लगभग 10:00 बज रहे थे. मंगल पांडे ने बंदूक उठा कर के उसमें गोलियां भरी. वह हाथों में बंदूक लेकर उस मैदान में जा पहुंचे जहां सैनिक परेड कर रहे थे. उन्होंने सैनिकों को संबोधित करते हुए कहा – ” भाइयों, चुपचाप क्यों बैठे हो?, देश और धर्म तुम्हें पुकार रहा है. उठो मेरे साथ दो, फिरंगी को देश से बाहर निकाल दो. देश की बागडोर उनके हाथों से छीन लो.” लेकिन सैनिकों ने कुछ भी उत्तर नहीं दिया. वे अपने आस्थान पर बैठे ही रहे, चुपचाप मंगल पांडे भी बात सुनते रहे.
मंगल पांडे परेड के मैदान में शेर की तरह दहाड़ ने लगे. उसी दौरान मेजर हुसैन वहां उपस्थित हुआ. मंगल पांडे की बात उसके भी कानों में पड़ी. उसने सैनिकों की ओर देखते हुए का – ” मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लो” पर कोई सैनिक नहीं उठा. इससे साफ साफ स्पष्ट है कि सैनिकों की सहानुभूति मंगल पांडे के प्रति थी. जय मंगल पांडे के साथ तो नहीं थे लेकिन सत्य यही है कि मंगल पांडे की तरह वह भी अंग्रेजों का विनाश चाहते थे. सैनिकों को मौत देखकर हुसन गरज उठा – ” मेरा हुकम मानो, मंगल पांडे को गिरफ्तार कर लो”.
इन शब्दों के उत्तर में मंगल पांडे की बंदूक गरज उठी – ” धाँय-धाँय” बंदूक की गोलियां मेजर की छाती में जा लगी. धरती पर गिरते ही उसके प्राण निकल गए.
18 अप्रैल 1857, को मंगल पांडे को फांसी दी जानी थी. ऐसा कहा जाता है कि बैरकपुर के सभी जलादो ने मंगल पांडे को फांसी देने के लिए मना कर दिया था. जल्लादों ने कहा था कि मंगल पांडे के खून से वह अपने हाथों को नहीं रंगगे.
इसके बाद अंग्रेजी सरकार ने कोलकाता से चार जल्लादों को बुलवाया और मंगल पांडे को फांसी की सजा सुना दी गई. मंगल पांडे की फांसी का असर यह हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी में भारतीय सैनिकों के मन में अंग्रेजी सरकार के विरोध में स्वतंत्रता की अग्नि जल उठी.