Swami Vivekanand Biography Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – एक ऐसे सन्यासी और संत है जिन्होंने भारत देश का नाम पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया है. स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रचंड विद्वान थे. स्वामी विवेकानंद ने योग, राजयोग और ज्ञान योग जैसे महान ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगो युगो तक छाया रहेगा.
स्वामी विवेकानंद वेदों के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु के रूप में पूरे विश्व भर में जाने जाते हैं. यही वजह है कि स्वामी विवेकानंद भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति की जीवन प्रतिमूर्ति माने जाते थे. जिन्होंने संपूर्ण विश्व को भारत की संस्कृति, धार्मिक मूल्यों के आधार पर नैतिक मूल्यों से परिचय करवाया था. स्वामी विवेकानंद वेद, साहित्य और इतिहास की विद्याओं में निपुण थे. स्वामी विवेकानंद को संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के हिंदू आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया. इन्होंने भारतीय संस्कृति और भारत को अपने ज्ञान से पूरे विश्व भर में गौरवविनीत किया है.
आज के हमारे इस लेख में हम, Swami Vivekanand Biography Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – इनके जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी लेंगे.
Swami Vivekanand Biography Hindi – स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्ता था. युवावस्था में ही व्वे गुरु रामाकृष्णापुरम हनसा के संपर्क में आए और उनका झुकाव सनातन धर्म की ओर बढ़ने लगा.
गुरु रामाकृष्ण परमहमसा से मिलने से पहले स्वामी विवेकानंद एक साधारण व्यक्ति की तरह ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. गुरु रामा कृष्णा उनके अंदर की ज्ञान की ज्योति जलाने का काम किया. वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म महासभा में दिए गए अपने भाषण के लिए जाना ही जाते हैं. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में ‘ मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनोंबहनों’ कहकर शुरुआत की थी. स्वामी विवेकानंद की अमेरिका यात्रा से पहले भारत को दासो और अज्ञान लोगों की जगह माना जाता था. स्वामी विवेकानंद जी ने दुनिया को भारत के आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांता दर्शन कराएं.
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन
स्वामी विवेकानंद का संक्षिप्त जीवन परिचय
स्वामी विवेकानंद संक्षिप्त जीवन परिचय |
---|
नाम - स्वामी विवेकानंद |
वास्तविक नाम - नरेंद्र दास दत्त |
पिता का नाम - विश्वनाथ दत्त |
माता का नाम - भुनेश्वरी देवी |
जन्मतिथि - 12 जनवरी 1863 |
जन्म स्थल - कोलकाता, पश्चिमी बंगाल, भारत |
राष्ट्रीयता - भारतीय |
पेशा - आध्यात्मिक गुरु |
प्रसिद्धि का कारण - संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रचार प्रसार |
गुरु का नाम - रामा कृष्णा परमहंस |
मृत्यु - 4 जुलाई वर्ष 1902 |
मृत्यु स्थान - बेलूर मठ, पश्चिमी बंगाल भारत |
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट में हुआ था. स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र दास था. उनके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम भुनेश्वरी देवी था. स्वामी विवेकानंद कोलकाता के एक उच्च कुलीन परिवार से संबंध रखते थे.
इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक नामी और सफल वकील थे. विश्वनाथ दत्त उस दौरान कोलकाता में स्थित उच्च न्यायालय में अटॉर्नी एट लॉ (Attorney-at-law) के पद पर काम कर रहे थे. उनकी माता भुनेश्वरी देवी बुद्धिमान व धार्मिक प्रवृत्ति की महिला की और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका स्वामी विवेकानंद को अपनी मां से ही मिला था.
स्वामी विवेकानंद जी आर्थिक रूप से संपन्न परिवार में पले बढ़े थे. उनके पिता पाश्चात्य संस्कृति (Western Culture) पर विश्वास करते थे इसलिए वह उन्हें अंग्रेजी भाषा और शिक्षा का ज्ञान दिलवाना चाहते थे.
लेकिन, स्वामी विवेकानंद को अंग्रेजी भाषा और शिक्षा में उतना मन नहीं लगा. बल्कि, स्वामी विवेकानंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी होने के बावजूद उनका शैक्षिक प्रदर्शन औसत था. उनको यूनिवर्सिटी एंट्रेंस लेवल परीक्षा में केवल 47 फ़ीसदी, एएफसी में 46 फ़ीसदी और दीए में 56 फ़ीसदी अंकी मिले थे.
उनकी माता भुनेश्वरी देवी के एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. वाह नरेंद्र नाथ ( स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम) को बचपन से ही महाभारत और रामायण की कहानियां सुनाया करती थी. जिसके बाद उनकी आध्यात्मिकता के चेतन में बढ़ते चले गए. कहानियां सुनते समय उनका मन हर्षोल्लास से भरा रहता था. रामायण सुनते सुनते बालक नरेंद्र नाथ का सरल शिशु हृदय भक्ति रस से भर जाता था.
अक्सर अपने घर में ही ध्यान मग्न हो जाया करते थे. एक बार बार अपने ही घर में ध्यान में इतने दिन हो गए थे कि घर वालों ने उन्हें जोर-जोर से हिलाया तब कहीं जाकर उनका ध्यान टूटा था.
जब स्वामी विवेकानंद मात्र 25 वर्ष की हुए तो उन्होंने अपना घर और परिवार छोड़कर सन्यासी बनने का निर्णय लिया. विद्यार्थी जीवन में वे ब्रह्म समाज के नेता महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर के संपर्क में आए. उस दौरान स्वामी विवेकानंद की जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने स्वामी विवेकानंद को रामा कृष्णा परमहंस के पास जाने की सलाह दी थी.
स्वामी रामकृष्ण परमहंस जो दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के एक पुजारी थे. परमहंस जी की कृपा से स्वामी जी को आत्मज्ञान प्राप्त हुआ और वह परमहंस जी के प्रमुख शिष्य बन गए.
वर्ष अट्ठारह सौ पचासी में राम कृष्णा परमहंस जी को कैंसर के कारण मृत्यु हो गई. उसके बाद स्वामी विवेकानंद जी ने रामाकृष्ण संघ की स्थापना की. आगे चलकर के जिसका नाम रामा कृष्णा मठ व रामाकृष्ण मिशन हो गया.
स्वामी विवेकानंद शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में
11 सितंबर वर्ष 1893, के दिन शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन का आयोजन होने वाला था. स्वामी जी उस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे.
जैसे ही धर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने अपने ओजस्वी वाणी से भाषण की शुरुआत की और कहा – ” मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” वैसे ही सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से 5 मिनट तक गूंजता रहा. इसके बाद स्वामी जी ने अपने भाषण में भारतीय सनातन वैदिक संस्कृति के विषय में अपने विचार रखें. जिससे ना केवल अमेरिकी प्रभावित हुए बल्कि विश्व में स्वामी जी का आदर और बढ़ गया था.
स्वामी विवेकानंद द्वारा दिया गया भाषण इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है. धर्म संसद के बाद स्वामी जी 3 वर्षों तक अमेरिका और ब्रिटेन में वेदांता की शिक्षा का प्रचार प्रसार करते रहे. 15 अगस्त 1897 को स्वामी विवेकानंद श्रीलंका पहुंचे, जहां पर उनका जोरदार स्वागत किया गया था. विलियम शेक्सपियर की जीवनी पढ़ने के लिए आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.

स्वामी विवेकानंद से जुड़ी प्रेरक प्रसंग एवं कहानियां
जब स्वामी जी की प्रसिद्धि पूरे विश्व भर में फैल चुकी थी. तब उन से प्रभावित होकर के एक विदेशी महिला उनके पास मिलने आई. उस महिला ने स्वामी जी से कहा – ” मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं.” स्वामी विवेकानंद जी ने इसका उत्तर देते हुए कहा – ” हे देवी मैं तो ब्रह्मचारी पुरुष हूं, आपसे कैसे विवाह कर सकता हूं? ”.
तब महिला ने स्वामी जी से कहा – ” मैं आपसे इसलिए भी बात करना चाहती हूं, ताकि मुझे आप की तरह पुत्र प्राप्त हो सके और वह बड़ा होकर दुनिया में अपने ज्ञान को फैला सके और नाम रोशन कर सके”.
यह सुनकर के स्वामी विवेकानंद जी ने महिला को नमस्कार किया और कहा – ” हे मां! लीजिए आज से आप मेरी मां है.” आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल गया और मेरे ब्रह्मचर्य का पालन भी हो गया. यह सुनकर के व महिला स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ी.
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
4 जुलाई वर्ष 1902, गोस्वामी जी ने बेलूर मठ में पूजा अर्चना की और योग भी किया. उसके बाद वहां के छात्रों को योग, वेदों संस्कृत विषय के बारे में पढ़ाया. संध्या काल के समय स्वामी जी ने अपने कमरे में योग करने गए वह अपने शिष्यों को शांति भंग करने के लिए मना किया और योग करते समय उनकी मृत्यु हो गई.
मृत्यु के समय स्वामी विवेकानंद जी की आयु 39 वर्ष. स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस पर पूरे भारतवर्ष में “युवा दिवस” (Youth Day) के रूप में मनाया जाता है.
स्वामी विवेकानंद के अनमोल विचार

- ” हम ऐसी शिक्षा चाहते हैं, जिससे चरित्र निर्माण हो. मानसिक शक्ति का विकास हो. ज्ञान का विस्तार हो और जिससे हम खुद के पैरों में खड़े होने में सक्षम बन जाए.”
- ” उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए.”- स्वामी विवेकानंद
- ” कभी यह मत कहना कि मैं यह नहीं कर सकता. ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि तुम अनंत स्वरूप हो, तुम सर्वशक्तिमान हो”
- ” अगर बार बार आप असफल हो जाओ तो भी कोई हानि नहीं है. सहस्त्र बार-बार इस आदर्श को अपने हृदय में धारण करें. अगर उसके बाद भी असफल हो जाए तो एक बार फिर कोशिश करें.”
- ” साधारण मनुष्य अपने विचार का 90% व्यर्थ नष्ट कर देता है, इसलिए वह निरंतर भूल करता है. एक प्रशिक्षित मान्य कभी कोई भूल नहीं करता है.”
- ” आलसी जीवन जीने से अच्छा मरना उचित है, पराजित होकर जीने की तुलना में युद्ध क्षेत्र में मर जाना श्रेष्ठ कर है.”
- ” तुम जो कुछ सोचोगे, तुम वही हो जाओगे. अगर तुम अपने को दुर्बल समझोगे, तो तुम दुर्बल बन जाओगे. बलवान सोचोगे तो बलवान बन जाओगे.”