The Brahmin And The Cobra Panchtantra Story – ब्राह्मण और सांप की कथा

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The Brahmin And The Cobra Panchtantra Story – ब्राह्मण और सांप की कथा

लालच बुरी बला है

किसी नगर में हरिदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था. उसकी खेती साधारण की थी. अंतः अधिकांश समय खाली ही रहता था. एक बार ग्रीष्म ऋतु में वह इसी प्रकार अपने खेत पर वृक्ष की शीतल छाया में लेटा हुआ था. सोते-सोते उसने अपने समीप एक सांप का बिल देखा, उस पर एक सांप फन फैलाए बैठा हुआ था.

उसको देखकर वह ब्राह्मण विचार करने लगा कि हो ना हो, यही मेरे क्षेत्र का देवता है. मैंने कभी इसकी पूजा नहीं की है. अंतः मैं आज अवश्य इसकी पूजा करूंगा. यह विचार मन में आते ही वह उठा और कहीं से जाकर दूध ले आया.

उसे उसने एक मिट्टी के बर्तन में रखा है और बिल के पास जाकर के बोला – ” हे क्षेत्रपाल! आज तक मुझे आप के विषय में मालूम नहीं था, इसलिए मैं किसी प्रकार की पूजा अर्चना नहीं कर पाया. आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन- धान्य से समृद्ध कर दीजिए.”

इस प्रकार प्रार्थना करके उसने उस दूध को वहीं पर रख दिया और फिर अपने घर की ओर लौट चला. दूसरे दिन प्रातः काल जब अपने खेत पर आया तो सबसे पहले उसी का स्थान पर गया. वहां उसने देखा कि जिस बर्तन में उसने दूध रखा था उसमें एक स्वर्ण मुद्रा रखी हुई है. The Brahmin And The Cobra Panchtantra Story

उसने उस मुद्रा को उठाकर रख लिया. उस दिन भी उसने उसी प्रकार सांप की पूजा की और उसके लिए दूध रखकर चला गया. अगले दिन प्रात काल उसको फिर से एक स्वर्ण मुद्रा मिली. इस प्रकार अब हर दिन बाद पूजा करता और अगले दिन उसको एक स्वर्ण मुद्रा मिल जाया करती थी.

कुछ दिनों बाद उसको किसी कार्य से अन्य ग्राम में जाना पड़ा. उसने अपने पुत्र को उस स्थान पर दूध रखने का निर्देश दिया. तदनुसार उस दिन उसका पुत्र गया और वहां दूध रखकर आया. दूसरे दिन जब वह पुनः दूध रखने के लिए गया तो देखा कि वहां स्वर्ण मुद्रा रखी हुई है.

उसने उत्थान मुद्रा को उठा लिया और वह मन ही मन सोचने लगा कि निश्चित ही इस बिल के अंदर स्वर्ण मुद्रा का भंडार है. मन में यह विचार आते ही उसने निश्चय किया कि बिल को खोदकर सारी स्वर्ण मुद्रा निकाल लेगा. लेकिन सर्प का भय भी था. किंतु जब दूध पीने के लिए सर्प बाहर निकला तो उसने उसके सिर पर लाठी से प्रहार कर दिया.

इससे सांप तो मरा नहीं और इस प्रकार से क्रोध होकर उसने ब्राह्मण पुत्र को अपने विष भरे दांतों से काट लिया. उसकी तत्काल मृत्यु हो गई. उसके संबंधियों ने उस लड़के को वही उस खेत पर जला दिया.

कहा जाता है, लालच का फल कबीर मीठा नहीं होता है.

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