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The Cunning Mediator Panchtantra Story – धूर्त बिल्ली का न्याय पंचतंत्र कहानियां
बिल्ली का न्याय
एक जंगल में विशाल वृक्ष के तने के नीचे बनी एक खोल में कपिंजल नाम का एक तीतर रहा करता था. एक दिन बाद तीतर अपने साथियों के साथ बहुत दूर के खेत में धान की नई नई कोंपले खाने चला गया.
बहुत रात बीतने के बाद उस वृक्ष के खाली पड़े खोल में ” शीघ्रगो’ नाम का खरगोश घुस आया और वहीं रहने लगा.
कुछ दिन बाद कपिंजल तीतर अचानक ही आ गया. धान की नई-नई कोंपले खाने के बाद वह खूब मोटा ताजा हो गया था. अपनी खोल पर आने पर उसने देखा कि वहां एक खरगोश बैठा है. उसने खरगोश को अपनी जगह खाली करने को कहा.
खरगोश तीखे के स्वभाव का था, बोला — ” यह घर अब तेरा नहीं है, वापी, कूप, तलाब और बीच के घरों का यही नियम है कि जो भी उस में बसेरा कर ले उसका ही वह घर हो जाता है. घर का स्वामित्व केवल मनुष्य के लिए होता है, पक्षियों के लिए ग्रह स्वामित्व का कोई विधान नहीं है.”
इस तरह झगड़ा बढ़ता गया. अंत में, कपिंजल ने किसी भी तीसरे पंच से इसका निर्णय करने की बात कही. उनकी लड़ाई और समझौते की बातचीत को एक जंगली बिल्ली सुन रही थी. उसने सोचा, मैं ही पंच बन जाऊं तो कितना अच्छा है; दोनों को मारकर खाने का अवसर मिल जाएगा. The Cunning Mediator Panchtantra Story
यह सोच हाथ में माला लेकर सूर्य की ओर मुख करके नदी के किनारे कुशासन बिछाकर वह आंखें मूंद बैठ गई और धर्म का उपदेश देने लगी.
उसके धर्म उपदेश को सुनकर खरगोश ने कहा — “यह देखो! कोई तपस्वी बैठा है, इसी को पंच बना कर पूछ लेते हैं”.
तीतर बिल्ली को देखकर डर गया; दूर से बोला — “मुनिवर! तुम हमारे झगड़े का निपटारा कर दो. जिसका पति धर्म विरोध होगा उसे तुम खा लेना.”
यह सुन बिल्ली ने आंखें खोली और कहा — ” राम राम! ऐसा ना कहो. मैंने हिंसा का नर्त्य मार्ग छोड़ दिया है. अंतः मैं धर्म विरोधी पक्ष की भी हिंसा नहीं करूंगी. हां, तुम्हारा निर्णय करना मुझे स्वीकार है. किंतु, मैं वृद्ध हूं; दूर से तुम्हारी बात सुन नहीं सकती, पास आकर अपनी बात कहो.” The Cunning Mediator Panchtantra Story
बिल्ली की बात पर दोनों को विश्वास हो गया. दोनों ने उसे पंच मान लिया, और उसके पास आ गए. उसने भी झपट्टा मारकर दोनों को एक साथ ही पंजों में दबोच लिया. इस तरह दोनों की प्राण चली गई. इस झगड़े का बिल्ली ने काफी फायदा उठा लिया था.