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The Dove and The Hunter Panchtantra Story – कबूतर का जोड़ा और शिकारी
एक बार की बात है, एक जगह एक लोभी और निर्दय व्याघ रहता था. पक्षियों को मारकर खाना ही उसका काम था. इस भयंकर काम के कारण उसके प्रियजनों ने भी उसका साथ छोड़ दिया था.
तब से वह अकेला ही, जाल और लाठी लेकर जंगलों में पक्षियों का शिकार के लिए घूमता रहता था. एक दिन उसके जाल में एक कबूतर फस गई. उसे लेकर जगह अपनी कुटिया की ओर चला तो आकाश में बादलों से गिरा देखा. मूसलाधार वर्षा होने वाली थी.
सर्दी और ठंड से ठिठुर कर व्याघ आश्रय की तलाश में खोज करने लगा. थोड़ी दूर पर एक पीपल का वृक्ष था. उसके खोल में घुसते हुए उसने कहा -” यहां जो भी रहता है, मैं उसकी शरण जाता हूं. इस समय जो मेरी सहायता करेगा उसका जन्म भर ऋणी रहूंगा.”
उस खोल में वही कबूतर रहता था. जिसकी पत्नी को व्याघ ने अपने जाल में फंसाया था. कबूतर उस समय पत्नी के वियोग से दुखी होकर विलाप कर रहा था. पति को प्रेम आतुर पाकर कबूतर का मन आनंद से झूम उठा था. उस कबूतर ने मन ही मन सोचा — ” मेरे धन्य भाग्य है जो ऐसा प्रेमी पति मिला है. पति का प्रेम ही पत्नी का जीवन है. पति की प्रसन्नता से ही स्त्री जीवन सफल होता है. मेरा जीवन सफल हुआ.” यह विचार कर वह पति से बोली –
” पतिदेव! मैं तुम्हारे सामने हूं. इस व्याघ ने मुझे बांध लिया है. यह मेरे पुराने कर्मों का फल है. हम अपने कर्म फल से दुख भोंगते हैं. मेरे बंधन की चिंता छोड़ कर तुम इस समय अपनी शरणागत अतिथि की सेवा करो. जो जीव अपने अतिथि का सत्कार नहीं करता उसके सब पुण्य छूटकर अतिथि के साथ चले जाते हैं और सब पाप वही रह जाते हैं.” The Dove and The Hunter Panchtantra Story
पत्नी की बात सुनकर कबूतर ने व्याघ से कहा – ” चिंता ना करो वादिक! इस घर को भी अपना ही जानो. कहो, मैं तुम्हारी कौन सी सेवा कर सकता हूं?”
व्याघ ने कहा -” मुझे सर्दी सता रही है, इसका उपाय कर दो.”
कबूतर ने लकड़ियां इकट्ठा करके जला दी. और कहा — ” तुम आग सेख कर सर्दी दूर कर लो.”
कबूतर को अब अतिथि सेवा के लिए भोजन की चिंता हुई. किंतु, उसके घोसले में तो अन का एक भी दाना नहीं था. बहुत सोचने के बाद उसने अपने शरीर से ही व्याघ की भूख मिटाने का विचार किया. यह सोचकर वह महात्मा कबूतर स्वयं जलती आग में कूद पड़ा. आपने शरीर का बलिदान करके भी उसने व्याघ के तर्पण करने का प्रण पूरा किया. The Dove and The Hunter Panchtantra Story
व्याघ मैं जब कबूतर का यह अद्भुत बलिदान देखा तो आश्चर्य में डूब गया. उसकी आत्मा उसे धिक्कार ने लगी. उसी क्षण उस कबूतरी की चाल से निकलकर मुक्त कर दिया और पक्षियों को फसाने के जाल व अन्य उपकरणों को तोड़ फोड़ कर फेंक दिया.
कबूतरी अपने पति को आग में जलता देख कर विलाप करने लगी. उसने सोचा — ” अपने पति के बिना अब मेरा जीवन का प्रयोजन ही क्या है? मेरे संसार उजड़ गया, अब किसके लिए प्राण धारण करो?” यह सोचकर वह पतिव्रता भी आग में कूद पड़ी. इन दोनों के बलिदान पर आकाश से पुष्प वर्षा हुई. व्याघ ने उसी दिन से प्राणी हिंसा छोड़ दी.