The Story of the Potter Panchtantra – कुम्हार की कथा पंचतंत्र – ऐसे ही और भी कहानियां पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके कर सकते हैं. अब मैं यहां पर 60 से भी अधिक कहानियों को संग्रहित किया है.
The Story of the Potter Panchtantra – कुम्हार की कथा पंचतंत्र
युधिष्ठिर नाम का कुम्हार था. एक बार टूटे हुए खड़े किए नुकीले ठिकरे से टकराकर गिर गया. गिरते ही वह ठीकरा उसके माथे में घुस गया. खून चारो तरफ बहने लगा. घाव गहरा था, दवा दारू से भी ठीक ना हुआ. घाव बढ़ता ही गया. कई महीने ठीक होने में लग गए. ठीक होने पर भी वह निशान उसके माथे पर रह गया था.
कुछ दिन बाद अपने देश में अकाल पड़ने पर वह दूसरे देश में चला गया. वहां वह राजा का सेवक बंद करके काम करने लगा. राजा ने 1 दिन उसके माथे पर घाव के निशान देखें तो समझ आया कि वह अवश्य कोई वीर पुरुष होगा, जो लड़ाई में शत्रु का सामने से मुकाबला करते हुए घायल हो गया होगा. यह समझ उसने उसे अपनी सेना में ऊंचे पद दे दिया. राजा के पुत्र व अन्य सेनापति इस सम्मान को देखकर जलते थे, लेकिन राजा क्रोधित से कुछ भी कह नहीं पाते थे.
कुछ दिन बाद उस राजा को युद्ध भूमि में जाना पड़ा. वहां जब लड़ाइयां की तैयारी हो रही थी, हाथियों पर होदे डाले जा रहे थे, घोड़ों पर काठिया चढ़ाया जा रहा था. युद्ध का बिगुल सैनिकों को युद्ध भूमि के लिए तैयार होने का संदेश दे रहा था – ‘ राजा ने प्रसंग बस युधिष्ठिर कुम्हार से पूछा –” वीर! तेरे माथे पर या गहरा घाव किस संग्राम में कौन से शत्रु का सामना करते हुए लगा था?”
कुम्हार ने सोचा कि अब राजा और उसमें इतनी निकटता हो चुकी है कि राजा सच्चाई जानने के बाद भी उसे मानता रहेगा. यह सोच उसने सच बात कह दी की — ” महाराज! यह घाव हथियार का घाव नहीं है. मैं तो एक कुम्हार हूं. एक दिन शराब पीकर लड़खड़ा ता हुआ जब मैं घर से निकला तो घर में बिखरे पड़े घड़ों के ठीकरों से टकराकर गिर पड़ा था. एक नुकीला ठीकरा माथे में गिर गया था. यह निशान उसका ही है.”
राजा यह बात सुनकर बहुत लज्जित हुआ, और क्रोध से खाते हुए बोला — ” तूने मुझे ठग कर इतना ऊंचा पद पा लिया. अब मेरी राज्य से निकल जा.” तुम हारने बहुत अनुनय विनय की की — ” मैं युद्ध के मैदान में तुम्हारे लिए प्राण दे दूंगा, मेरा युद्ध कौशल तो देख लो.” किंतु, राजा ने कुम्हार की एक भी बात ना सुने. उसने कहा कि भले ही तुम सर्वगुण संपन्न हो, शूरवीर हो, पराक्रमी हो, किंतु हो तो तुम एक कुम्हार ही. तेरी अवस्था उस गीदड़ की तरह है, जो शेर के बच्चे मेपल कर भी हाथी से लड़ने को तैयार ना हुआ था.”
इस तरह राजा ने कुम्हार से कहा कि — ‘ तू भी इससे पहले कि अन्य राजपूत्र तेरा कुम्हार होने का भेद जाने, और तुझे मार डाले, तू यहां से भागकर कुम्हारों में मिल जा.”
अंत में कुम्हार वह राज्य छोड़कर चला गया. The Story of the Potter Panchtantra