The War of Crows and Owls Panchtantra Story – कौवे और उल्लू का युद्ध पंचतंत्र कथा

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The War of Crows and Owls Panchtantra Story – कौवे और उल्लू का युद्ध पंचतंत्र कथा

दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर था. नगर के पास एक बड़ा पीपल का पेड़ था. उसकी घनी पत्तियों से ढकी शाखाओं पर पक्षियों के घोंसले बने हुए थे. उन्हीं में से कुछ घोंसले मे कौवे के बहुत से परिवार भी रहते थे.

कौवा का राजा वायसराज मेघवर्ण भी वहीं रहता था. वहां उसने अपने दल के लिए एक चक्रव्यू सा बना लिया था.

उससे कुछ दूर पर्वत की गुफा में उल्लू का दल रहता था. फूलों के राजा का नाम अरिमर्दन था. दोनों में स्वाभाविक वैर था. उल्लू का राजा हर रात पीपल के वृक्ष के चारों ओर चक्कर लगाता. वहां कोई एकला दुबला कौवा मिल जाता तो उसे मार देता था. इसी तरह एक-एक करके उसने सैकड़ों कौवों को मार दिया था.

तब, मेघवर्ण ने अपने मंत्रियों को बुलाकर उनसे उल्लू के राजा के प्रहारों से बचने का उपाय पूछा. उसने कहा’ ” कठिनाई यह है कि हम रात को देख नहीं सकते और दिन को उल्लू ना जाने कहां जा छुपे हैं. हमें उनके स्थान के संबंध में कुछ भी नहीं पता. समझ में नहीं आता है कि इस समय संधि, युद्ध, यान, आसन, संश्रय, आदि उपायों में से किसका प्रयोग किया जाए?”

पहले मेघवर्ण ने ‘उज्जीवी’ नाम के प्रथम सचिव से प्रश्न किया. उसने उत्तर दिया — ‘ महाराज! बलवान शत्रु से युद्ध नहीं करना चाहिए. उससे तो संधि करना ही ठीक है. युद्ध से हानि ही होनी है. समान बल वाले शत्रु से भी पहले संधि करके, कछुए की तरह सिमटकर, शक्ति संग्रह करने के बाद ही युद्ध करना उचित होता है.’

उसके बाद ‘ संजीवी’ नाम के दूसरे सचिव से प्रश्न किया गया. उसने कहा — ‘ महाराज! शत्रु के साथ संधि नहीं करना चाहिए. शत्रु संधि के बाद भी नहीं करता है. पानी अग्नि द्वारा गर्म होने के बाद भी अग्नि को ही बुझा देता है. विशेषता क्रूर , अत्यंत लोभी और धर्म रहित शत्रु से तो कभी भी संधि ना करें. शत्रु के प्रति शांति भाव दिखला ने से उसकी शत्रुता की आग और भी बढ़ जाती है. The War of Crows and Owls Panchtantra Story

खेत शत्रु से हम आमने सामने की लड़ाई ना लड़ सके उसे छल बल द्वारा हराना उचित होता है, किंतु संधि नहीं करना चाहिए. सच तो यह है कि जिस राजा की भूमि शत्रुओं के खून से और उनकी विधवा स्त्रियों के आंसू से नहीं खींची गई, वह राजा होने योग्य ही नहीं.”

तब मेघवर्ण ने तीसरे सचिव अनुजीवी से प्रश्न किया. उसने कहा — ” महाराज! हमारा शत्रु दुष्ट है, बल में अधिक है. इसलिए उसके साथ संधि और युद्ध दोनों के करने में हानि है. उसके लिए तो शास्त्रों में यान नीति काही विधान है. हमें यहां से अधिक किसी दूसरे देश में चला जाना चाहिए. इस तरह पीछे हटने से कायरता दोष नहीं होता. फिर भी तो हमला करने से पहले पीछे हटता है. वीरता का अभियान करके जो हट पूर्वक युद्ध करता है, वह शत्रु की ही इच्छा पूरी करता है और अपने वह अपने वंश का नाश कर देता है.”

इसके बाद मेघवर्ण ने अपने चौथे सचिव ‘ प्रजीवी’ से प्रश्न किया. उसने कहा — ” महाराज! मेरी सहमति में तो संधि, विग्रह और यान तीनों में दोष है. हमारे लिए आसान नीति का आश्रय लेना ही ठीक है. अपने आप स्थान पर दिल से बैठना सबसे अच्छा उपाय है. मगरमच्छ अपने स्थान पर बैठकर शेर को भी हरा देता है, हाथी को भी पानी में खींच लेता है. वहीं यदि अपना स्थान छोड़ दे तो चूहा से भी हार जाएंगे. अपने दुर्ग में बैठकर हम बड़े से बड़े शत्रु का सामना कर सकते हैं. अपने दुर्ग में बैठकर हमारा एक सिपाही सौ शत्रुओं का नाश कर सकता है. हमें अपने दुर्ग को दृढ़ बनाना चाहिए. अपने अस्थान पर दृढ़ता से खड़े छोटे-छोटे वृक्षों को आंधी तूफान के प्रबल झोंके भी उखाड़ नहीं सकते हैं.” The War of Crows and Owls Panchtantra Story

तब मेघवर्ण ने अपने चिरंजीवी नाम के पांचवे सचिव से प्रश्न किया. उसने कहा — ” महाराज! मुझे तो इस समय संश्रय नीति भी उचित प्रतीत होती है. किसी बलशाली सहायक मित्र को अपने पक्ष में करके ही हम शत्रु को हरा सकते हैं. अंतः हमें यही ठहर कर किसी समर्थ मित्र की सहायता ढूंढनी चाहिए. यदि एक समर्थ मित्र ना मिले तो अनेक छोटे-छोटे मित्रों की सहायता भी हमारे पक्ष को सफल बना सकती है. छोटे-छोटे टीम को से गुथी हुई रस्सी भी इतनी मजबूत होती है कि हाथी को जकड़ कर बांध लेती है.”

पांचों मंत्रियों से सलाह लेने के बाद मेघवर्ण अपने वंशागति सचिव स्थिरजीवी के पास गया. उसे प्रणाम करके वह बोला — ” श्रीमान! मेरे सभी मंत्री मुझे अलग-अलग राय दे रहे हैं. आप उनकी सलाहें सुनकर अपना निश्चय दीजिए.”

स्थिरजीवी ने उत्तर दिया — ” वत्स! सभी मंत्रियों ने अपने बुद्धि के अनुसार ठीक ही मंत्रणा दी है, अपने अपने समय सभी नीतियां अच्छी होती है. किंतु, मेरी सहमति में तो तुम्हें द्वैधीभाव, या भेदनीति का ही आश्रय लेना चाहिए. उचित या है कि पहले हम संधि द्वारा शत्रु में अपने लिए विश्वास पैदा कर ले, लेकिन शत्रु पर विश्वास ना करें. संधि करके युद्ध की तैयारी करते रहे, तैयारी पूरी होने पर युद्ध कर दें. संधि काल में हमें शत्रु के निर्बल स्थलों का पता लगाना चाहिए. उनसे परिचित होने के बाद वही आक्रमण कर देना उचित है.”

मेघवर्ण ने कहा — ” आपका कहना निसंदेह सत्य है, किंतु शत्रु का निर्माण स्थल किस तरह देखा जाए?” The War of Crows and Owls Panchtantra Story

स्थिरजीवी — ” गुप्त चरो द्वारा ही हम शत्रु के निर्बल स्थल की खोज कर सकते हैं. गुप्त चर ही राजा की आंख का काम देता है, और हम छल द्वारा शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं.”

तब मेघवर्ण ने कहा — ” आप जैसा आदेश करेंगे, वैसा ही मैं करूंगा.”

स्थिरजीवी — ” अच्छी बात है. मैं खुद गुप्तचर का काम करूंगा. तुम मुझसे लड़ कर, मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर खुद सपरिवार ऋषि मुख पर्वत पर चले जाओ. मैं तुम्हारे शत्रु उल्लू का विश्वास पात्र बनकर उन्हें इस वृक्ष पर बने अपने दुर्ग में बसा लूंगा और अवसर पाकर उन सब का नाश कर दूंगा. तब तुम फिर यहां आ जाना.”

मेघवर्ण नहीं ऐसा ही किया. थोड़ी देर में दोनों की लड़ाई शुरू हो गई. दूसरे कौवे जब उसकी सहायता को आए तो उसने उन्हें दूर करके कहा — ” इसका दर्द मैं खुद दे दूंगा” अपनी चोच के प्रहार से घायल करके वह स्थिरजीवी को वही फेंकने के बाद अपने आप परिवार सहित ऋषि मुख पर्वत पर चला गया.

तब उल्लू की मित्र कलिका ने मेघवर्ण के भागने और घायल स्थिरजीवी से लड़ाई होने की बात उल्लूराज से कह दी. उल्लू के राजा ने भी रात आने पर दल बल समेत पीपल के वृक्ष पर आक्रमण कर दिया. उसने सोचा — भागते हुए शत्रु को नष्ट करना अधिक सहज होता है. पीपल के वृक्ष को घेर कर उसने शेष रह गया सभी कौंवे को मार दिया.

अभी उल्लू के राजा की सेना भागते हुए कौवे का पीछा करने की सोच रही थी कि आहत स्थिरजीवी ने करहाना शुरू कर दिया. उसे सुनकर सब का ध्यान उसकी ओर चला गया. सब उल्लू उसे मारने को झपटे. तभी उसने कहा –

” इससे पहले कि तुम मुझे जान से मार डालो, मेरी एक बात सुन लो. मैं मेघवर्ण का मंत्री हूं. मेघवर्ण नहीं मुझे घायल करके इस तरह फेंक दिया है. मैं तुम्हारे राजा से बहुत सी बातें करना चाहता हूं. उससे मेरी बात करवा दो.”

सब उल्लूओं ने उलूकराज से यह बात कही. उलूकराज राजा खुद स्थिरजीवी से मिलने के लिए गया. उसे देखकर वह आश्चर्य से बोला — ” तेरी यह दशा किसने कर दी?”

स्थिरजीवी — ” देव! बात यह है कि दुष्ट मेघवर्ण आपके ऊपर सेना सहित आक्रमण करना चाहता था. मैंने उसे रोकते हुए कहा कि वह बहुत बलशाली है, उनसे युद्ध मत करो, उनसे सुलह कर लो. बलशाली शत्रु से संधि करना ही उचित होता है. उसे सब कुछ देकर भी वह अपने प्राणों की रक्षा तो कर ही लेता है. मेरी बात सुनकर उस दुष्ट मेघवर्ण ने समझा कि मैं आपका शुभचिंतक हूं. इसलिए वाह मुझ पर झपट पड़ा. जब मेरे गांव भर जाएंगे तो मैं खुद आपके साथ जाकर मेघवर्ण को खोज निकाल लूंगा और उसका सर्वनाश में सहायता करूंगा.”

स्थिरजीवी बात सुनकर उलूकराज मैं अपने सभी पुराने मंत्रियों से सलाह ली. उसके पास भी पांच मंत्री थे” रक्ताक्ष, क्रूराक्ष, दीप्ताक्ष, वक्रनास, प्रकारकर्ण.

सबसे पहले रक्ताक्ष से पूछा — ” इस शरणागत शत्रु मंत्री के साथ कौन सा व्यवहार किया जाए?” रक्ताक्ष ने कहा कि इसे अविलंब मार दिया जाए. शत्रु को निर्बल अवस्था में ही मार देना चाहिए, अन्यथा बली होने के बाद वह दुर्जय हो जाता है. इसके अतिरिक्त एक और बात है, एक बार टूट कर जुड़ी हुई प्रीति स्नेह के अतिशय प्रदर्शन से भी बढ़ नहीं सकता है.”

रक्ताक्ष से सलाह लेने के बाद उलूकराज ने दूसरे मंत्री क्रूराक्ष से सलाह ली कि स्थिरजीव का क्या किया जाए? The War of Crows and Owls Panchtantra Story

क्रूराक्ष के बाद, दीप्ताक्ष से भी यही प्रश्न किया गया, दोनों ने ही एक ही सहमति दी.

इसके बाद अरिमर्दन ने वक्रनास से प्रश्न किया. उसने कहा – ” देव! हमें इस शरणागत शत्रु की हत्या नहीं करनी चाहिए. कई बार शत्रु भी हित का कार्य कर देता है. आपस में ही जब उनका विवाद हो जाए तो एक शत्रु दूसरे शत्रु को स्वयं नष्ट कर देता है.”

उसकी बात सुनने के बाद अरिमर्दन ने फिर दूसरे मंत्री प्रकारकर्ण से पूछा — ” सचिव! तुम्हारी क्या सहमति है?”

प्रकारकर्ण ने कहा — ” देव! या शरणागत व्यक्ति अवध्य है. हमें अपने परस्पर के मरमों की रक्षा करनी चाहिए.”

अरिमर्दन ने भी प्रकारकर्ण की बात का समर्थन करते हुए या निश्चय किया कि स्थिरजीवी की हत्यार ना की जाए. रक्ताक्ष का अपने राजा से गहरा मतभेद हो गया था. वह स्थिरजीवी की मृत्यु में ही उल्लू का हित देख रहा था. अंतः उसने अपनी सहमति प्रकट करते हुए अन्य मंत्रियों से कहा कि तुम अपने मूर्खता से उल्लू के वंश का नाश कर दोगे. लेकिन, रक्ताक्ष की बातों पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. The War of Crows and Owls Panchtantra Story

उलूकराज के सैनिकों ने स्थिरजीवी कौवा को सैया पर लिटा कर अपने पर्वतीय दुर्ग की ओर कूच करने लगे. दुर्ग के पास पहुंचकर स्थिरजीवी ने उल्लू के राजा से निवेदन किया — ” महाराज! मुझ पर इतनी कृपा क्यों करते हो? मैं इस योग्य नहीं हूं. अच्छा हो, आप मुझे जलती हुई आग में डाल दें.”

उल्लू के राजा ने कहा — ” ऐसा क्यों बोलते हो?”

स्थिरजीवी — ” स्वामी! आग में जलकर मेरे पापों का प्रायश्चित हो जाएगा. मैं चाहता हूं कि मेरा शरीर आग में नष्ट हो जाए और मुझ में उलूकत्व आ जाए. तभी मैं उस पापी मेघवर्ण से बदला ले सकूंगा.”

रक्ताक्ष कौवा कि इस पाखंड भरी चालों को अच्छी तरह से समझ रहा था — ” उसने कहा — स्थिरजीवी! तू बड़ा चतुर और कुटिल है. मैं जानता हूं कि उल्लू बन कर भी तू कौवों का हित ही सोचेगा.”

उल्लू के राजा के अनुसार सैनिक स्थिरजीवी को अपने दुर्ग में ले गए. दुर्ग के द्वार पर पहुंचकर उल्लू के राजा ने अपने साथियों से कहा कि स्थिरजीवी को वही स्थान दिया जाए जहां वहां रहना चाहता है.

स्थिरजीवी ने सोचा कि उसे दुर्ग के द्वार पर ही रहना चाहिए, जिससे दूर से बाहर जाने का अवसर उसे मिलता रहे.

यही सोच उसने उल्लू के राजा से कहा — ” देव! आपने मुझे यह आदर देखकर बहुत लज्जित किया है. मैं तो आपका सेवक ही हूं, और सेवक के स्थान पर ही रहना चाहता हूं. मेरा स्थान दुर्ग के द्वार पर ही रखिए. द्वार की जो धूल आपके पद कमलों से पवित्र होगी उसे अपने मस्तक पर रखकर ही मैं अपने को सौभाग्यवान मानूंगा.”

उल्लू के राजा ने इन मीठे वचनों को सुनकर फूले न समाए. उन्होंने अपने साथियों को कहा कि स्थिरजीवी को यथेष्ट भोजन दिया जाए.

प्रतिदिन स्वादिष्ट और पुष्ट भोजन खाते खाते स्थिरजीवी फिर से पहले जैसा मोटा ताजा हो गया था. जब रक्ताक्ष ने उसे हष्ट पुष्ट और पहले जैसा मोटा ताजा देखा तो उसने कहा – ” यहां सभी मूर्ख हैं. लेकिन मंत्रियों ने अपने मूर्खता भरे व्यवहार में परिवर्तन नहीं किया. पहले की तरह ही वे स्थिरजीवी को अन्न माँस खिला पिला कर मोटा करते रहे हैं.”

रक्ताक्ष ने यह देख कर अपने पक्ष के साथियों से कहा कि अब यहां हमें नहीं रुकना चाहिए. हम किसी दूसरे पर्वत की गुफा में अपना दुर्ग बना लेंगे.

फिर रक्ताक्ष ने अपने साथियों से कहा कि ऐसे मूर्ख समुदाय में रहना विपत्ति को पास बुलाना है. उसी दिन परिवार समिति रक्ताक्ष वहां से दूर किसी दूसरे पर्वत की गुफा में चला गया.

रक्ताक्ष के विदा होने पर स्थिरजीवी बहुत प्रसन्न होकर सोचने लगा — ” यह अच्छा ही हुआ कि रक्ताक्ष यहां से चला गया. इन मूर्ख मंत्रियों में अकेला वही चतुर और दूरदर्शी था.”

रक्ताक्ष के जाने के बाद में स्थिरजीवी ने उल्लू के नाश की तैयारी पूरे जोर से शुरू कर दी. छोटे-छोटे लकड़ियां चुनकर वह पर्वत की गुफा के चारों ओर रखने लगा. The War of Crows and Owls Panchtantra Story

जब पर्याप्त लकड़िया एकत्र हो गई तो वह एक दिन सूर्य के प्रकाश में उल्लू के अंधे होने के बाद अपने पहले मित्र राजा मेघवर्ण के पास गया, और बोला — “मित्र! मैंने शत्रु को जलाकर भस्म कर देने की पूरी योजना तैयार कर ली है. तुम भी अपने चोंच मे एक एक जलती लकड़ी लेकर, उल्लू के राजा के दुर्ग के चारों ओर फैला दो. दुर्ग जलकर राख हो जाएगा. शत्रु दल अपने ही घर में जलकर नष्ट हो जाएगा.”

यह बात सुनकर मेघवर्ण बहुत प्रसन्न हुआ. उसने स्थिरजीवी से कहा — ” महाराज, कुशल क्षेम से दूर रहे, बहुत दिनों के बाद आपके दर्शन हुए हैं.”

स्थिरजीवी ने कहा — ” वत्स ! यह समय बातें करने का नहीं, यदि किसी शत्रु ने वहां जाकर मेरे यहां आने की सूचना दे दी तो बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा. शत्रु कहीं दूसरी जगह भाग जाएगा. जो काम शीघ्रता से करने योग्य हो, उस में विलंब नहीं करना चाहिए. शत्रु कुल का नाश करके फिर शांति से बैठ कर बातें करेंगे”.

मेघवर्ण ने भी यह बात मान ली. कौवे सब अपनी चोंच मैं एक जलती हुई लकड़ी लेकर शत्रु दुर्ग की ओर चल पड़े और वहां जाकर लकड़ियां दुर्ग के चारों ओर फैला दी. उल्लू के घर जलकर राख हो गए और सारे उल्लू अंदर ही अंदर तड़प कर मर गए.

इस प्रकार उल्लूओं का वंश नाश करके मेघवर्ण फिर से अपने पुराने पीपल के वृक्ष पर आ गया. विजय के उपलक्ष में सभा बुलाई गई. स्थिरजीवी को बहुत सा पुरस्कार देकर मेघवर्ण ने उससे पूछा — ” महाराज! आपने इतने दिन शत्रु के दुर्ग में किस प्रकार व्यतीत किए? शत्रु के बीच रहना तो बड़ा संकट पन होता है. हर समय प्राण गले में अटके रहते हैं.”

स्थिरजीवी ने उत्तर दिया — ” तुम्हारी बात ठीक है, लेकिन मैं तो आपका सेवक हूं. सेवक को अपनी तप के अंतिम फल का इतना विश्वास होता है कि वह क्षणिक कष्टों की चिंता नहीं करता. इसके अतिरिक्त, मैंने यह देखा कि तुम्हारे प्रति पक्षी उलूकराज के मंत्री महामूर्ख है. एक रक्ताक्ष ही बुद्धिमान था, वह भी उन्हें छोड़ गया. मैंने सोचा, यही समय बदला लेने का है. शत्रु के बीच विचरने वाले गुप्तचर को मान अपमान की चिंता छोड़नी ही पड़ती है. वह केवल अपने राजा का स्वार्थ सोचता है. मान मर्यादा की चिंता का त्याग करके वहां स्वार्थ साधने के लिए चिंतनशील रहता है.”

वायसराज मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को धन्यवाद देते हुए कहा — ” मित्र, आप बड़े पुरुषार्थी और दूरदर्शी है. एक कार्य को आरंभ करके उसे अंत तक निभाने को आपकी क्षमता अनुपम है. संसार में कई तरह के लोग हैं. निजतम प्रवृत्ति के वह है जो विघ्न भय से किसी भी कार्य का आरंभ नहीं करते, मध्यम वह है जो विघ्न भय से हर काम को बीच में छोड़ देते हैं, किंतु उत्कृष्ट वही है जो सैकड़ों विघ्नों के होते हुए भी आरंभ किए गए काम को बीच में नहीं छोड़ता. आपने मेरे शत्रुओं का समूल नाश करके उत्तम कार्य किया है.”

स्थिरजीवी ने उत्तर दिया — ” महाराज! मैंने अपना धर्म पालन किया है. देव ने आप का साथ दिया. पुरुषार्थी बहुत बड़ी वस्तु है, किंतु देव अनुकूल ना हो तो पुरुषार्थी भी फलित नहीं होता. आपको अपना राज्य मिल गया. लेकिन याद रखिए, राज्य क्षणस्थायी होता है. बड़े-बड़े विशाल राज क्षणभर में बनते और मिटते रहते हैं. शाम के रंगीन बादलों की तरह उनकी आभा भी क्षण भर की होती है. इसलिए राज्य के मद मैं आकार अन्याय नहीं करना, और अन्याय से प्रजा का पालन करना. राजा प्रजा का स्वामी नहीं, सेवक होता है.”

इसके बाद स्थिरजीवी की सहायता से मेघवर्ण बहुत वर्षों तक सुख पूर्वक राज्य करता रहा. The War of Crows and Owls Panchtantra Story

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